श्री गणेशाय नमः
मित्रो,
नमस्कार।
शब्द को ब्रह्म कहा गया। शब्द का एक पर्याय ध्वनि या शोर भी है। तेलुगु में कहते हैं चाला शब्दं वस्तुन्नदि- यानी बहुत शोर हो रहा है।
भाषा-विज्ञान में कहा जाता है कि भाषा की सबसे छोटी अर्थवान इकाई है- शब्द। शब्दों को जोड़-जोड़कर भाषा बनती है। सोचिए, यदि शब्द न हों तो हमारा जीवन कैसा हो जाए?
रॉबिन्सन क्रूसो किसी निर्जन द्वीप पर बरसों अकेला पड़ा रहा। फिर उसे मिला फ्राइडे- मैन फ्राइडे! भाषाएं दोनों की अलग-अलग, किन्तु उसकी वाणी सुनकर क्रूसो को कैसा आनन्द आया होगा! इस बात को केवल वे लोग समझ सकते हैं जो कभी तन्हाई में रहे हैं।
काला पानी-- तीसरी मंजिल पर स्थित बरामदे के सबसे आखिरी छोर पर बनी सात गुणा तेरह फुट की कोठरी में तीन दशक से अधिक समय अकेले, बिना किसी से बोले-चाले काटे वीर सावरकर ने। आपको किसी से बात न करने दिया जाए, इससे बड़ी सजा कोई नहीं हो सकती।
बात करने के लिए चाहिए- शब्द, भाषा की सबसे सार्थक इकाई शब्द।
कविता करने के लिए चाहिए- शब्द। इसीलिए कविवर सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय ने कहा- मुझे एक दो शब्द कि मैं कविता कर पाऊँ।
हम सब अपने जीवन में शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग शब्दों के धनी होते हैं। कुछ बस सीमित शब्दों वाले लोग होते हैं। वे बहुत कम बोलते हैं।
तो मैं आया हूँ आपसे पास शब्दों की दुनिया लेकर।
शब्दों पर अनुसन्धान कार्य के लिए मुझे पीएच.डी. की उपाधि मिली। शब्दों के संसार, उनके उद्भव, विकास, विस्तार और प्रसार को मैंने बड़ी जिज्ञासा और उत्सुकता से देखा-परखा है। मैं चाहता हूँ आपके साथ अपने अनुभवों, अपनी जिज्ञासा, उत्कंठा और उपलब्धि को बाँटूं। आपके साथ साझा करूँ उस आनन्द को जो शब्दों के अनुसंधान से हासिल होता है।
आशा है इस ब्लॉग के माध्यम से मैं शब्दों के बारे में अपनी सोच और विचार को आप तक पहुँचाने में सफल हो पाऊँगा।
सादर,
आपका ही
डॉ. रामवृक्ष सिंह
मित्रो,
नमस्कार।
शब्द को ब्रह्म कहा गया। शब्द का एक पर्याय ध्वनि या शोर भी है। तेलुगु में कहते हैं चाला शब्दं वस्तुन्नदि- यानी बहुत शोर हो रहा है।
भाषा-विज्ञान में कहा जाता है कि भाषा की सबसे छोटी अर्थवान इकाई है- शब्द। शब्दों को जोड़-जोड़कर भाषा बनती है। सोचिए, यदि शब्द न हों तो हमारा जीवन कैसा हो जाए?
रॉबिन्सन क्रूसो किसी निर्जन द्वीप पर बरसों अकेला पड़ा रहा। फिर उसे मिला फ्राइडे- मैन फ्राइडे! भाषाएं दोनों की अलग-अलग, किन्तु उसकी वाणी सुनकर क्रूसो को कैसा आनन्द आया होगा! इस बात को केवल वे लोग समझ सकते हैं जो कभी तन्हाई में रहे हैं।
काला पानी-- तीसरी मंजिल पर स्थित बरामदे के सबसे आखिरी छोर पर बनी सात गुणा तेरह फुट की कोठरी में तीन दशक से अधिक समय अकेले, बिना किसी से बोले-चाले काटे वीर सावरकर ने। आपको किसी से बात न करने दिया जाए, इससे बड़ी सजा कोई नहीं हो सकती।
बात करने के लिए चाहिए- शब्द, भाषा की सबसे सार्थक इकाई शब्द।
कविता करने के लिए चाहिए- शब्द। इसीलिए कविवर सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय ने कहा- मुझे एक दो शब्द कि मैं कविता कर पाऊँ।
हम सब अपने जीवन में शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग शब्दों के धनी होते हैं। कुछ बस सीमित शब्दों वाले लोग होते हैं। वे बहुत कम बोलते हैं।
तो मैं आया हूँ आपसे पास शब्दों की दुनिया लेकर।
शब्दों पर अनुसन्धान कार्य के लिए मुझे पीएच.डी. की उपाधि मिली। शब्दों के संसार, उनके उद्भव, विकास, विस्तार और प्रसार को मैंने बड़ी जिज्ञासा और उत्सुकता से देखा-परखा है। मैं चाहता हूँ आपके साथ अपने अनुभवों, अपनी जिज्ञासा, उत्कंठा और उपलब्धि को बाँटूं। आपके साथ साझा करूँ उस आनन्द को जो शब्दों के अनुसंधान से हासिल होता है।
आशा है इस ब्लॉग के माध्यम से मैं शब्दों के बारे में अपनी सोच और विचार को आप तक पहुँचाने में सफल हो पाऊँगा।
सादर,
आपका ही
डॉ. रामवृक्ष सिंह